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दस देहों की गंध / अनूप अशेष
Kavita Kosh से
दो कमरे का घर
दस देहों की गंध
और तुम
हर कोने में।
हर बासी सुबहों
बासी ख़बरों में,
लंगड़े पाँवों
दौड़े दिन
ज्यों हवा परों में।
उम्र दोपहर
रात उनींदी
तुम होने में।
एक हँसी काली आँखों में
दूध-चंद्रमा,
बुझी अँगीठी
गर्म-सड़क पर
शिवा-उमा।
सागर-मंथन का
अमृत-विष
एक दोने में।