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सीढ़ी लगे उतरने / अनूप अशेष
Kavita Kosh से
किनके पंजों
पाँव-पाँव हम
घुनी सीढ़ियाँ लगे उतरने।
उम्र उठी
चल कर आई
वैसाखी थामे,
बैठे रहे सहोदर
बेटे
अपने नामे।
सूखे पत्तों में
चमके चिंगारी
आए बाँहों भरने।
कोई किसी नाम का
ऐसे गुन
क्यों गाए,
पोथी-पत्रा
आखर-बानी
सुख तरसाए।
हिरनों के छौने
घाटी में
ऊपर झरने।