भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहिंसा / भारत भूषण अग्रवाल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:12, 8 अक्टूबर 2008 का अवतरण (अहिंसा / भारतभूषण अग्रवाल का नाम बदलकर अहिंसा / भारत भूषण अग्रवाल कर दिया गया है)
कवि: भारतभूषण अग्रवाल
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
खाना खा कर कमरे में बिस्तर पर लेटा
सोच रहा था मैं मन ही मन : 'हिटलर बेटा
बड़ा मूर्ख है,जो लड़ता है तुच्छ-क्षुद्र मिट्टी के कारण
क्षणभंगुर ही तो है रे ! यह सब वैभव-धन।
अन्त लगेगा हाथ न कुछ, दो दिन का मेला।
लिखूँ एक ख़त, हो जा गाँधी जी का चेला।
वे तुझ को बतलायेंगे आत्मा की सत्ता
होगी प्रकट अहिंसा की तब पूर्ण महत्ता ।
कुछ भी तो है नहीं धरा दुनिया के अन्दर ।'
छत पर से पत्नी चिल्लायी : " दौड़ो , बन्दर !"