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 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: आओ मंदिर मस्जिद खेलें
  रचनाकार: रामकुमार कृषक

आओ मंदिर मस्जिद खेलें खूब पदायें मस्जिद को 
कल्पित जन्मभूमि को जीतें और हरायें मस्जिद को 

सिया-राममय सब जग जानी सारे जग में राम रमा 
फिर भी यह मस्जिद, क्यों मस्जिद चलो हटायें मस्जिद को 

तोड़ें दिल के हर मंदिर को पत्थर का मंदिर गढ़ लें 
मानवता पैरों की जूती यह जतलायें मस्जिद को 

बाबर बर्बर होगा लेकिन हम भी उससे घाट नहीं 
वह खाता था कसम खुदा की हम खा जायें मस्जिद को 

मध्यकाल की खूँ रेज़ी से वर्तमान को रंगें चलो 
अपनी-अपनी कुर्सी का भवितव्य बनायें मस्जिद को 

राम-नाम की लूट मची है मर्यादा को क्यों छोड़ें 
लूटपाट करते अब सरहद पार करायें मस्जिद को 

देश हमारा है तोंदों तक नस्लवाद तक आज़ादी 
इसी मुख्य धारा में आने को धमकायें मस्जिद को 

धर्म बहुत कमजोर हुआ है लकवे का डर सता रहा 
अपने डर से डरे हुए हम चलो डरायें मस्जिद को 

गंगाजली उठायें झूठी सरयू को गंदा कर दें 
संग राम को फिर ले डूबें और डूबायें मस्जिद को