भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवा में उछलते हुए / अभिज्ञात
Kavita Kosh से
हवा में उछलते हुए
गेंद
उछल रही है
उससे पहले मेरे टखने
एड़ियाँ
पंजे
गेंद में देख रहे हैं मेरे पैर
अपनी उछाल
मेरे पैर गेंद के अन्दर हैं
पैर को यूँ उछलता देख
बेचैन होता है मेरा सिर
देने के लिए-शाबाशी
कोई देख सकता है मुझे यूँ
हवा में उछलते हुए।