भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है यह आजु बसन्त समौ / बिहारी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:08, 28 दिसम्बर 2009 का अवतरण (है यह आजु बसन्त समौ का नाम बदलकर है यह आजु बसन्त समौ / बिहारी कर दिया गया है)
है यह आजु बसन्त समौ, सु भरौसो न काहुहि कान्ह के जी कौ
अंध कै गंध बढ़ाय लै जात है, मंजुल मारुत कुंज गली कौ
कैसेहुँ भोर मुठी मैं पर्यौ, समुझैं रहियौ न छुट्यौ नहिं नीकौ
देखति बेलि उतैं बिगसी, इत हौ बिगस्यौ बन बौलसरी कौं।।