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जो भी सपना / अश्वघोष
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:57, 3 जनवरी 2010 का अवतरण
जो भी सपना तेरे-मेरे दरमियाँ रह जाएगा
बस वही इस ज़िन्दगी की दास्ताँ रह जाएगा
कट गए है हाथ तो आवाज़ से पथराव कर
याद सबको यार मेरे ये समाँ रह जाएगा।
भूख है तो भूख का चर्चा भी होना चाहिए
वरना घुट कर सबके भीतर ये धुआँ रह जाएगा।
ये धुँधलके हैं समय के तू अभी परवाज़ कर
फट गया गर यूँ ही बादल, तू कहाँ रह जाएगा।
जो भी पूछे ये अदालत बोल देना बेझिझक
तू न रह पाया तो क्या तेरा बयाँ रह जाएगा।