भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीली मुलायम लटें / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:19, 3 जुलाई 2008 का अवतरण
गीली मुलायम लटें
आकाश
साँवलापन रात का गहरा सलोना
स्तनों के बिंबित उभार लिए
हवा में बादल
सरकते
चले जाते हैं मिटाते हुए
जाने कौन से कवि को...
नया गहरापन
तुम्हारा
हृदय में
डूबा चला जाता
न जाने कहाँ तक
आकाश-सा
ओ साँवलेपन
ओ सुदूरपन
ओ केवल
लयगति...