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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ / फ़राज़
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत<ref>प्रेम के अभिमान</ref> का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रहे-दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ
इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ऐ-जाँ मुझको रुलाने के लिए आ
अब तक दिल-ऐ-ख़ुशफ़हम को तुझ से है उम्मीदें
ये आखिरी शम्मएँ भी बुझाने के लिए आ
शब्दार्थ
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