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मन / रमानाथ अवस्थी

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मन को वश में करो
फिर चाहे जो करो ।

कर्ता तो और है
रहता हर ठौर है
वह सबके साथ है
दूर नहीं पास है
तुम उसका ध्यान धरो ।
फिर चाहे जो करो ।

सोच मत बीते को
हार मत जीते को
गगन कब झुकता है
समय कब रुकता है
समय से मत लड़ो ।
फिर चाहे जो करो ।

रात वाला सपना
सवेरे कब अपना
रोज़ यह होता है
व्यर्थ क्यों रोता है
डर के मत मरो ।
फिर चाहे जो करो ।