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जब-तब / अशोक वाजपेयी

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जब सारे अपमान झर गए
जब मुरझा गईं सारी इच्छाएँ,
जब गली में आगे जाने की जगह न रही—
तब वह उदारचरित देवता आया
बीत गए जीवन की गाथा से
कुछ चरित्र, कुछ घटनाएँ वापस लाकर
उनकी धूल-मैल साफ़ कर
उन्हें उपहारों की तरह उजला बनाते हुए।