भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हरो जन की भीर / मीराबाई
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:24, 24 जून 2009 का अवतरण
हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, चट बढ़ायो चीर।।
भगत कारण रूप नर हरि, धरयो आप समीर।।
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो, धरयो नाहिन धीर।।
बूड़तो गजराज राख्यो, कियौ बाहर नीर।।
दासी मीरा लाल गिरधर, चरणकंवल सीर।।