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इतने बरसों बाद / अनूप अशेष
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इतने बरसों बाद भले से
लगते गीले घर।।
गौरैया के पंख भीग कर
निकले पानी से,
कितने गए अषाढ़
देह के
छप्पर-छानी से।
बिटिया के मन में उगते
चिड़ियों के पीले-पर।।
अबके हरे-बाँस फूटें
आँगन शहनाई में,
कितने छूँछे
हर बसंत
बीते परछाई में।
अंकुराई है धान खेत के
सूखे-डीले पर।।
लाज लगे कोई देखे तो
फूटे पीकों-सी,
दूध-भरी
फूटी दोहनी के
खुलते छींकों-सी।
माँ की आँखों में झाँके-दिन
बंधन ढीले कर।।