भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन पढ़ेगा ? / नरेन्द्र मोहन
Kavita Kosh से
त्रिपुरारि कुमार शर्मा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:41, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण
रचनाकार: नरेन्द्र मोहन
रंगों की बुनावट में चमक है
अब भी
चमक में छिपा है कोई संदेश
कल का
कल के लिए
गिरती दीवारों पर अंकित है
एक अबूझ लिपि
कौन पढ़ेगा
ढहती इमारत की भाषा ?