जीवन का झरना / आरसी प्रसाद सिंह
यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है ।
सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है ।
कब फूटा गिरि के अंतर से ? किस अंचल से उतरा नीचे ?
किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे ?
निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है !
धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है ।
बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता,
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता ।
लहरें उठती हैं, गिरती हैं; नाविक तट पर पछताता है ।
तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है ।
निर्झर कहता है, बढ़े चलो ! देखो मत पीछे मुड़ कर !
यौवन कहता है, बढ़े चलो ! सोचो मत होगा क्या चल कर ?
चलना है, केवल चलना है ! जीवन चलता ही रहता है !
रुक जाना है मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है !