Last modified on 14 अप्रैल 2009, at 19:00

खादी गीत / सोहनलाल द्विवेदी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:00, 14 अप्रैल 2009 का अवतरण


खादी के धागे धागे में

अपनेपन का अभिमान भरा,

माता का इसमें मान भरा

अन्यायी का अपमान भरा;



खादी के रेशे रेशे में

अपने भाई का प्यार भरा,

माँ–बहनों का सत्कार भरा

बच्चों का मधुर दुलार भरा;



खादी की रजत चंद्रिका जब

आकर तन पर मुसकाती है,

तब नवजीवन की नई ज्योति

अन्तस्तल में जग जाती है;



खादी से दीन विपन्नों की

उत्तप्त उसास निकलती है,

जिससे मानव क्या पत्थर की

भी छाती कड़ी पिघलती है;



खादी में कितने ही दलितों के

दग्य हृदय की दाह छिपी,

कितनों की कसक कराह छिपी

कितनों की आहत आह छिपी!



खादी में कितने ही नंगों

भिखमंगों की है आस छिपी,

कितनों की इसमें भूख छिपी

कितनों की इसमें प्यास छिपी!



खादी तो कोई लड़ने का

है जोशीला रणगान नहीं,

खादी है तीर कमान नहीं

खादी है खड्ग कृपाण नहीं;



खादी को देख देख तो भी

दुश्मन का दल थहराता है,

खादी का झंडा सत्य शुभ्र

अब सभी ओर फहराता है!