भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज है, कल हुई / उर्मिलेश
Kavita Kosh से
पूर्णिमा वर्मन (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 02:13, 9 दिसम्बर 2006 का अवतरण
कवि:उर्मिलेश
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
आज है, कल हुई, हुई, न हुई
छांव हर पल हुई, हुई, न हुई
एक पहेली है ज़िंदगी अपनी
क्या पता हल हुई, हुई, न हुई
देह का फ़लसफ़ा बताता है
कल ये संदल हुई, हुई, न हुई
जो नदी तुझमें - मुझमें बह्ती है
उसमें कलकल हुई, हुई, न हुई
ये नुमाइश तो चार दिन की है
फिर ये हलचल हुई, हुई, न हुई
मानकर घास रौंद मत इसको
कल ये मखमल हुई, हुई, न हुई
जितना जी चाहे उतनी पी ले तू
फिर ये बोतल हुई, हुई, न हुई