भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नींद / आलोक धन्वा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:13, 1 नवम्बर 2010 का अवतरण
रात के आवारा
मेरी आत्मा के पास भी रुको
मुझे दो ऐसी नींद
जिस पर एक तिनके का भी दबाव ना हो
ऐसी नींद
जैसे चांद में पानी की घास