भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच कहता हूँ मैं / कैलाश गौतम
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:02, 17 अप्रैल 2008 का अवतरण (सच कहता हूं मैं / कैलाश गौतम moved to सच कहता हूँ मैं / कैलाश गौतम)
तुमने छुआ, जगा मन मेरा
सच कहता हूँ मैं
मेरा तो अब हुआ सबेरा
सच कहता हूँ मैं
काया पलट गयी मेरी
दिनचर्या बदल गयी
जैसे कोई फांस फंसी थी
खुद ही निकल गयी
खूब मिला तू रैन-बसेरा
सच कहता हूँ मैं।
सारी उलझन सुलझ गयी है
तेरे दर्शन से
मेरे मन में समा गया तू
मन के दर्पण से
मैं हूँ तेरा सांप संपेरा
सच कहता हूँ मैं
आधा-तीहा नहीं रहा मैं
पूरमपूर हुआ
जैसा बाहर वैसा भीतर
मैं भरपूर हुआ
हुई रोशनी, छंटा अंधेरा
सच कहता हूँ मैं।