भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जागृति / इन्साफ़ की डगर पे बच्चो दिखाओ चल के

Kavita Kosh से
Rajeysha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:38, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन्साफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम ही हो कल के

दुनियाँ के रंज सहना और कुछ ना मुँह से कहना
सच्चाईयों के बल पे, आगे को बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम, संसार को बदल के

अपने हों या पराये, सब के लिए हो न्याय
देखो कदम तुम्हारा, हरगि‍ज ना डगमगाए
रस्ते बडे कठि‍न हैं, चलना संभल-संभल के

इन्सानियत के सर पे, इज्जत का ताज रखना
तन मन की देकर भेंट, भारत की लाज रखना
जीवन नया मिलेगा, अंतिम चिता में जल के