भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संस्कृति का संवाहक / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:15, 6 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीपल का पेड़
पेड़ होते हुए देवता है
लोग इसे पूजते हैं
कहते हैं, इस गाँव में
सभी देव वास करते हैं।

पत्थर की चिकनी और गोल शिलाएँ
इस के मूल में श्रद्धा से रखते हैं
फूल फल चढाते हैं
फिर प्रसाद आए हुए लोगों में बाँटते हैं।

पीपल का पेड़ और पेडों के समान
काटा नहीं जाता
जिस से सबका हित हो
ऎसा कोई काम कभी आ पड़े
तभी लोग इस पर कुठार भी चलाते थे।

इस पेड़ को भारत के अस्तित्व और
संस्कृति का संवाहक कहते थे भारतीय।
गौतम का बोधिवृक्ष
यही है।