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यात्रा के बाद भी / ओम प्रभाकर

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यात्रा के बाद भी
पथ साथ रहते हैं।
हमारे साथ रहते हैं।

खेत खम्भे-तार
सहसा टूट जाते हैं,
हमारे साथ के सब लोग
हमसे छूट जाते हैं,

मगर
फिर भी
हमारी बाँह-गर्दन-पीठ को
छूते
गरम दो हाथ रहते हैं।