भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिलता रहा मन / किशन सरोज

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:01, 19 फ़रवरी 2010 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धर गए मेहंदी रचे दो हाथ जल में दीप
जन्म-जन्मों ताल-सा हिलता रहा मन

बांचते हम रह गए अंतर्कथा
स्वर्णकेशा गीत वधुओं की व्यथा
ले गया चुन कर कँवल कोई हठी युवराज
देर तक शैवाल-सा हिलता रहा मन

जंगलों का दुःख तटों की त्रासदी
भूल सुख से सो गयी कोई नदी
थक गयी लड़ती हवाओं से अभागी नाव
और झीने पाल-सा हिलता रहा मन

तुम गए क्या जग हुआ अंधा कुआँ
रेल छूटी रह गया केवल धुआँ
गुनगुनाते हम भरी आँखों फिरे सब रात
हाथ के रूमाल-सा हिलता रहा मन