हल्दीघाटी / सप्तम सर्ग / श्यामनारायण पाण्डेय
रचनाकार: श्यामनारायण पाण्डेय
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सप्तम सर्ग
सन्देश यही¸ उपदेश यही
कहता है अपना देश यही।
वीरो दिखला दो आत्म–त्याग
राणा का है आदेश यही।।24।।
अब से मुझको भी हास शपथ¸
रमणी का वह मधुमास शपथ।
रति–केलि शपथ¸ भुजपाश शपथ¸
महलों के भोग–विलास शपथ।।25।।
सोने चांदी के पात्र शपथ¸
हीरा–मणियों के हार शपथ।
माणिक–मोति से कलित–ललित
अब से तन के श्रृंगार शपथ।।26।।
गायक के मधुमय गान शपथ
कवि की कविता की तान शपथ।
रस–रंग शपथ¸ मधुपान शपथ
अब से मुख पर मुसकान शपथ।।27।।
मोती–झालर से सजी हुई
वह सुकुमारी सी सेज शपथ।
यह निरपराध जग थहर रहा
जिससे वह राजस–तेज शपथ।।28।।
पद पर जग–वैभव लोट रहा
वह राज–भोग सुख–साज शपथ।
जगमग जगमग मणि–रत्न–जटित
अब से मुझको यह ताज शपथ।।29।
जब तक स्वतन्त्र यह देश नहीं
है कट सकता नख केश नहीं।
मरने कटने का क्लेश नहीं
कम हो सकता आवेश नहीं।।30।।