भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असमानों उत्तरी इल्ल वे (ढोला) / पंजाबी

Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:21, 26 फ़रवरी 2010 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात
  • असमानों उत्तरी इल्ल वे

तेरा केहड़ी कुड़ी उत्ते दिल वे
सभ्भे ने कुआरियाँ, जीवें ढोला !
ढोल मक्खना !
दिल परदेसियाँ दा राज़ी रखना !

भावार्थ

--'आकाश से चील उतरी
अरे तुम्हारा किस युवती पर दिल है ?
सभी कुंवारी हैं
जीते रहो, सजन !
ओ सजना ! ओ मक्खन !
परदेसीओं का दिल राज़ी रखना !'