भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कब वो सुनता है कहानी मेरी / ग़ालिब

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी

ख़लिशे-ग़मज़ए-खूंरेज़<ref>खून-छिड़कती चोर नज़रें की चुभन</ref> ना पूछ
देख खूंनाबा-फ़िशानी<ref>ताजा बहा खून</ref> मेरी

क्या बयां करके मेरा रोएंगे यार
मगर आशुफ़्ता-बयानी<ref>झूठी कहानी</ref> मेरी

हूँ ज़ख़ुद-रफ़्ताए-बैदाए-ख़याल<ref>कल्पना के जंजाल में खोया हुआ</ref>
भूल जाना है निशानी मेरी

मुत्तक़ाबिल<ref>जो मुक़ाबले पर ना आ सके</ref> है मुक़ाबिल मेरा
रुक गया देख रवानी मेरी

क़द्र-ए-संग-ए-सर-ए-रह<ref>सड़क किनारे पड़े पत्थर जितनी कीमत</ref> रखता हूँ
सख़्त-अरज़ां<ref>तुच्छ</ref> है गिरानी<ref>महत्व</ref> मेरी

गर्द-बाद-ए-रह-ए-बेताबी<ref>बेचैनी की सड़क की आंधी</ref> हूँ
सरसर-ए-शौक़<ref>जोश की आंधी</ref> है बानी<ref>विशेषता</ref> मेरी

दहन<ref>मुँह</ref> उसका जो न मालूम हुआ
खुल गयी हेच-मदानी<ref>अंनजानापन</ref> मेरी

कर दिया ज़ो'फ़ ने आ़ज़िज़ "ग़ालिब"
नंग-ए-पीरी<ref>बुढ़ापे को लज्जित करने वाली</ref> है जवानी मेरी

शब्दार्थ
<references/>