भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निर्वाण षडकम / मृदुल कीर्ति

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:25, 26 अप्रैल 2010 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


निर्वाण षडकम
श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित

मनो-बुद्धि-अहंकार चित्तादि नाहं ,
न च श्रोत्र-जिह्वे न च घ्राण-नेत्रे ।
न च व्योम-भूमी न तेजो न वायु ,
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ १॥

मैं मन, बुद्धि, न चित्त अहंता, न मैं धरनि न व्योम अनंता.
मैं जिव्हा ना, श्रोत, न वयना, न ही नासिका ना मैं नयना .
मैं ना अनिल, न अनल सरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा .
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥१॥

न च प्राण-संज्ञो न वै पञ्च-वायु:,
न वा सप्त-धातुर्न वा पञ्च-कोष: ।
न वाक्-पाणी-पादौ न चोपस्थ पायु:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ २ ॥

न गतिशील, न प्राण आधारा, न मैं वायु पांच प्रकारा.
सप्त धातु , पद, पाणि न संगा, अन्तरंग न ही पाँचों अंगा.
पंचकोष ना , वाणी रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप, तदरूपा
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥२॥

न मे द्वेष-रागौ न मे लोभ-मोहौ,
मदे नैव मे नैव मात्सर्य-भाव: .
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्ष:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं .. ॥ ३ ॥

ना मैं राग, न द्वेष, न नेहा, ना मैं लोभ, मोह, मन मोहा.
मद-मत्सर ना अहम् विकारा, ना मैं, ना मेरो ममकारा
काम, धर्म, धन मोक्ष न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा,
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥३॥

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं ,
न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञा: ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ४ ॥

ना मैं पुण्य न पाप न कोई, ना मैं सुख-दुःख जड़ता जोई.
ना मैं तीर्थ, मन्त्र, श्रुति, यज्ञाः, ब्रह्म लीन मैं ब्रह्म की प्रज्ञा.
भोक्ता, भोजन, भोज्य न रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा,, मैं शिव रूपा ॥४॥

न मे मृत्यु न मे जातिभेद:,
पिता नैव मे नैव माता न जन्मो ।
न बन्धुर्न मित्र: गुरुर्नैव शिष्य:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ५॥

ना मैं मरण भीत भय भीता, ना मैं जनम लेत ना जीता.
मैं पितु, मातु, गुरु, ना मीता. ना मैं जाति-भेद कहूँ कीता.
ना मैं मित्र बन्धु अपि रूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥५॥

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो,
विभुत्त्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणां ।
सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध:
चिदानंद रूपं शिवो-हं शिवो-हं ..॥ ६॥

निर्विकल्प आकार विहीना, मुक्ति, बंध- बंधन सों हीना.
मैं तो परमब्रह्म अविनाशी, परे, परात्पर परम प्रकाशी.
व्यापक विभु मैं ब्रह्म अरूपा, मैं तो ब्रह्म रूप तदरूपा.
चिदानंदमय ब्रह्म सरूपा, मैं शिव-रूपा, मैं शिव-रूपा ॥६॥