भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिश्ते / संध्या पेडणेकर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:55, 16 मार्च 2010 का अवतरण
स्नेह नहीं
शुष्क काम है
लपलप वासना है
क्षणभंगुर
क्षण के बाद रीतनेवाली
मतलब से जीतनेवाली
रिश्तेदारी है
खाली घड़े हैं
अनंत पड़े हैं
उनके अन्दर व्याप्त अन्धकार
उथला है पर
पार नहीं पा सकते उससे
अन्धकार से परे कुछ नहीं
उजास एक आभास है
क्षितिज कोई नहीं
केवल
आकाश ही आकाश है