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एक चिनगारी के लिए / नवारुण भट्टाचार्य
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किसी बात की चिनगारी उड़कर
कब पड़ेगी सूखी घास पर
सारा शहर उथल-पुथल, भीषण क्रोध में होगा युद्ध
ठुड्डी कट जाएगी फटेगी छाती
लगाम छीन कर दौड़ पड़ेगा नाटक
सूखे कुएँ में कूदेगा सुख
सपने बन्द हैं क़ैदख़ाने में
कोई व्यथा की बारिश कब बींधेगी मधुमक्खी के छत्ते को
सारा शहर रक्त-लहर आशाओं को मिटाता युद्ध
टूटेंगे मुखोश आग्नेय रोष में
आग जले और गुड़िया नाचे
सलाख़ें टूटेगी अदम्य साहस
कई-कई छवियाँ टुकड़े-टुकड़े काँच में
कब खिलेगी कली बारूद की गन्ध से उन्मत्त
सारा शहर उथल-पुथल भीषण क्रोध में होगा युद्ध.