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फूस–पत्ते अगर नहीं मिलते / ओमप्रकाश यती
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डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:30, 18 अप्रैल 2010 का अवतरण
फूस–पत्ते अगर नहीं मिलते
कितने लोगों को घर नहीं मिलते।
देखना चाहते हैं हम जिनको
स्वप्न वो रात भर नहीं मिलते।
जंगलों में भी जाके ढूँढ़ो तो
इस क़दर जानवर नहीं मिलते।
दूर परदेश के अतिथियों से
दौड़कर के नगर नहीं मिलते।
चाहती हैं जो बाँटना खुशबू
उन हवाओं को ‘पर’ नहीं मिलते।