भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुकार / एकांत श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:01, 1 मई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसों से एक पुकार
मेरा पीछा कर रही है
एक महीन और मार्मिक पुकार
इस महानगर में भी
मैं इसे साफ-साफ सुन सकता हूँ।

आज जब यह पहली बारिश के बाद
धरती की सोंधी सुगंध की तरह
हर तरु से उठ रही है
मैं एकदम बेचैन और अवश
हो गया हूँ इसके सामने

क्‍या यह जड़ों की पुकार है
फुनगियों के लिए?
क्‍या यह डूबते दिन की पुकार है
पखेरूओं के लिए?

यह उस रास्‍ते की पुकार हो सकती है
जिसे अभी लौटने को कहकर
मैं छोड़ आया हूँ

यह पहाड़ों में भटकती कंदील की पुकार होगी

यह माँ की पुकार होगी
मैं बरसों से घर नहीं लौटा।