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पुराने रास्ते / एकांत श्रीवास्तव
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किनारे के पेड़ वही हैं
बस थोड़े सयाने हो गए हैं
ब्याह करने लायक बच्चों की तरह
पहले से ज़्यादा चुप हैं तपस्वी बरगद
हवा चलने पर सिर्फ़ उसकी जटाएँ
लहराती हैं कभी-कभी
खम्हार के पके पत्तों-सी
धीरे-धीरे हिल रही है दोपहर
घर वही हैं
लेकिन कुछ गिर गए हैं
कुछ बन गए हैं नए
इन पुराने रास्तों को
हाय! मैं आज तक नहीं भूला
जो नये रास्तों में भी लगातार
मेरे साथ चलते रहे
वैसी ही महीन और मुलायम है रास्ते की धूल
पाँव पड़ते ही उठती है
जैसे चौंककर पूछती हो- भैया!
कहाँ रहे इतने दिन?