भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दरिंदा / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
पूर्णिमा वर्मन (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 21:04, 16 अगस्त 2006 का अवतरण (दरिंदा moved to दरिंदा / भवानीप्रसाद मिश्र: ग़लत शीर्षक के कारण)
लेखक: भवानीप्रसाद मिश्र
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
दरिंदा
आदमी की आवाज़ में
बोला
स्वागत में मैंने
अपना दरवाज़ा
खोला
और दरवाज़ा
खोलते ही समझा
कि देर हो गई
मानवता
थोडी बहुत जितनी भी थी
ढेर हो गई !