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गाबरोवो / कर्णसिंह चौहान
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एक दूसरे से ऊबे
अहमन्यता शराब के नशे में डूबे
लोगों को हँसाता है
गाब रोवो ।
हँसी की ख़ातिर
गावदू बन जाते हैं
यहाँ के लोग
अपनी मूर्खता के किस्से
ख़ुशी-ख़ुशी सबको
सुनाते हैं
यहाँ के लोग
हँसता है पूरा देश
हँसता है यूरोप
अपनी बेहूदगियों का
हर वर्ष
त्यौहार मनाता है
गाबरोवो ।
क्या सचमुच ऐसे हैं
इस नगर के वासी ?
ख़ूब बनाते
फैलाते
नए-नए किस्से
किताबें छपवाते हैं ।
उर्वर है कल्पना
शीत से ठिठुरी धरती पर
उजली हँसी का वसंत
खिलाता है
गाबरोवो ।
कितना बड़ा जिगरा
जुटते हैं उत्सव में
दुनिया के बेजोड़ हँसोड़
छोड़ते पैने तीर
ख़ुशी में मगन
सुनता पूरा शहर
संकीर्णता का सारा बोध
मिटाता है
गाबरोवो ।