भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द / नीरज दइया

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:33, 1 जुलाई 2010 का अवतरण (/ नीरज दइया का नाम बदलकर दर्द / नीरज दइया कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द के सागर में
मैं डूबता तिरता हूं
कोई नहीं थामता
मेरा हाथ ।

मैं नहीं चाहता
मेरी पीड़ा का
बखान
पहुंचे आप तक
या उन तक ।

लेकिन कोई चारा भी नहीं है
मेरे दर्द का
साक्षी है
मेरा शब्द-शब्द ।

अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा