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पगडंडी / अवनीश सिंह चौहान
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चौड़े रस्ते पर सब चलते
पगडंडी पर कौन चलेगा?
सीधे-सादे पौधों को
मिलकर आरे काटें
बोझ उठाती शाखों को
चुन-चुन करके छाँटें
यों क्रूर हुए इन दाँतों की
धार मोड़ने कौन बढ़ेगा?
गाँव किनारे पेड़ों पर
कौवों को वास मिला
प्यारी कोयल-मैना को
केवल वनवास मिला
मीठे-रसमय गीत सुनाते
वनवासी को कौन वरेगा?
उड़े धरा से बहुत धुआँ
तिल-तिल सबको मारे
दुख में डूबे चमकीले
नभ के सारे तारे
चंदनवन की आग बुझाए
इन्दर राजा कौन बनेगा?