भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पान की कला / वीरेन डंगवाल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:36, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


भीगे लाल कपड़े पे
तहाके रखे पत्‍ते
झिल्‍ली झीने-मोटे-मोटे-पीले-हरे पत्‍ते
मघई-महोबा-या-बंगला-या-देसी
गोला-या-कपूरी-या-फिर मदरासी

जो पान नहीं खाय
वहू के समय आय
यह भारतीय उपमहाद्वीपता

थोड़ा सुपारी और देना भाई
तनिक चूना !
00