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घन-कुरंग / नागार्जुन

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रचनाकार: नागार्जुन

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नभ में चौकडियां भरें भले

शिशु घन-कुरंग

खिलवाड़ देर तक करें भले

शिशु घन-कुरंग

लो, आपस में गुथ गये खूब

शिशु घन-कुरंग

लो, घटा जल में गये डूब

शिशु घन-कुरंग

लो, बूंदें पडने लगीं, वाह

शिशु घन-कुरंग

लो, कब की सुधियाँ जगीं, आह

शिशु घन-कुरंग

पुरवा सिह्की, फिर दीख गये

शिशु घन-कुरंग

शशि से शरमाना सीख गये

शिशु घन-कुरंग


१९६४ में लिखित