भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोध / मनोज श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


   बोध
 
महास्वप्न की
वृत्ताकार जीवनमयता में
ठोस वायव अस्तित्त्व का
कटु यथार्थ भोग रहा हूं

कितना सच हैं--
सतत चढाव से सीमाबद्ध
यह जैविक अवसान
यह पतन
यह बोध
यह उन्माद!