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सहनशीलता / त्रिलोचन

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'आगे राह बंद है । 'पीछे-पीछे जाओ,
'लोग बाँध पर अटे पड़े हैं' । 'भीड़ बड़ी है'।
'अपने मन में थोड़ी सहनशीलता लाओ'।
'स्नान आज कल कर लेना, क्या यही घड़ी है'।
देख लिया जाने वालों की भीड़ खड़ी है
मानो सोच रही है वह आने वालों की
बात मान ले क्या । मेला है, यहाँ पड़ी है
सबको अपनी-अपनी । फिर खाने वालों की
ओर लखे भूखा यों समझाने वालों की
ओर खा । कुछ लौटे, कुछ ने पाँव बढ़ाए
कतरा कर । धुन अपनी सुन पाने वालों की
आँखों ने देखा कि, एक जन लाँग चढ़ाए

कीचड़ में लथपथ आता है, चिल्लाता है-
'लाशों पर चढ़ कर मानव आता जाता है ।