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प्रबोधिनी / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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प्रबोधिनी
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रचनाकार | भारतेंदु हरिश्चंद्र |
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प्रकाशक | हरिश्चंद्र चंद्रिका |
वर्ष | 1874 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- जागे मंगल-रूप सकल ब्रज-जन-रखवारे / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- होन चहत अब प्रात चक्रबाकिनी सुख पायो / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- दीप-जोति भइ मंद पहरूगन लगे जँभावन / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- मथत दही ब्रज-नारि दुहत गौअन ब्रज-वासी / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- नारद तुंबरु षट बिभास ललितादि अलापत / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- दुर्गादिक सब खरीं कोर नैनन की जोहत / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- बंदीजन सब द्वार खरे मधुरे गुन गावत / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- मथे सद्य नवनीत लिये रोटी घृत-बोरी / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- करत काज नहिं नंद बिना तुव मुख अवरेखे / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- करत रोर तम-चोर भोर चक्रवाक बिगोए / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- ललिता लीले बीन मधुर सुर सों कछु गावत / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- कबरी सबरी गूँथि फेर सों माँग भराओ / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- आलस पूरे नैन अरुन अब हमहिं दिखावहु / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- जागौ जागौ नाथ कौन तिय-रति रस भोए / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- जुगल कपोलन पीक छाप अति शोभा पावत / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- रहे नील पट ओढ़ि चूरिकन जहँ लपटाए / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- डूबत भारत नाथ बेगि जागो अब जागो / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- प्रथम मान धन बुधि कोशल बल देइ बढ़ायो / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- कहँ गए विक्रम भोज राम बलि कर्ण युधिष्ठिर / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- जहाँ बिसेसर सोमनाथ माधव के मंदिर / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- गयो राज धन तेज रोष बल ज्ञान नसाई / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- सीखत कोउ न कला, उदर भरि जीवत केवल / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- पृथ्वीराज जयचंद कलह करि जवन बुलायो / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- जागौ हौं बलि गई बिलंब न तनिक लगावहु / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- सब देसन की कला सिमिटि कै इतही आवै / भारतेंदु हरिश्चंद्र