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वर्षा ॠतु / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

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 जब ग्रीष्म ॠतु गई और वर्षा ॠतु आई
तब हम बिल्कुल फालतू थे
इसलिये एक कविता बनाई
और एक बड़े कार्यक्रम में 
तबियत से गाकर सुनाई
बदरा घिर आये रुत है भीगी॑ भीगी
नाचे मन मोरा मगन ताका धीगी धीगी
बीच में बैठे एक श्रोता से नहीं रहा जा रहा था
उससे वर्षा ॠतु का पारम्परिक वर्णन नहीं सहा जा रहा था
फिर भी हमने की बेहयाई
अपनी कविता और भी आगे बढ़ाई
सावन का महीना पवन करे शोर
जियरा रे ऐंसे झूमे जैसे वन में नाचे मोर
अब श्रोता हो गया था बिल्कुल बोर
वह चिल्लाया अबे चुप चोर!
एक घंटे से सुनी सुनाई कविता वाँच रहा है
हम मरे जा रहे हैं और तेरा जियरा नाच रहा है
बिना सोचे समझे क्या ऊटपटांग लिखता है
इतना वाहियात मौसम तुझे सुहाना दिखता है
यदि तुझे सचमुच आता है वरसात में मजा
तो जरा हाउसिंग बोर्ड में अजा
घुसते ही तथाकथित ऐतिहासिक सड़क में फस जायेगा
और जरा सा बहका तो 
स्कूटर समेत नाली में धस जायेगा
फिर तेरा मन नाच नहीं कूद कूद जायेगा
दूरदर्शन पर वरसात की भविष्यवाणी से ही
सारी कविता भूल जायेगा
खिड़की से पवन के झोंके की जगह
सांप की फुफकार सुनोगे तो तबियत हिल जायेगी
और कहीं चपेट में आ गये तो 
कविता के साथ साथ कवि से भी मुक्ति मिल जायेगी
यदि लिखना है तो लिखो हालात सच्चे
तुम मोर नाचने की बात करते हो
जबकि नाच रहे हैं सुअर के बच्चे
टूटे सेप्टिक टेंक की गन्दगी
जो वाकी समय सड़क के किनारे वहती थी
अब वरसात की कृपा से 
दरवाजे तक आ जाती है
और हरियाली के साथ साथ चारों ओर
गन्दगी ही गन्दगी छा जाती है
हमें पता ही नहीं 
कैसी होती है मिट्टी की गन्ध ?
यहाँ तो व्याप्त हो जाती है
सिनेटरी लाईन की दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध
माना कि वरसात की बूँदें 
प्रेमियों को अच्छी लगती हैं
बशर्ते वे घंटे दो घंटे गिरें
बादलों से भी शिकायत नहीं 
वे घिरें तो घिरें उनका स्वागत है
पर आपको नहीं मालूम श्रीमान !
यह हाउसिंग बोर्ड का छत है
बादल तो पन्द्रह मिनिट बरस कर चला जाता है
परन्तु यह हरामजादा छत 
उसे पन्द्रह घंटे तक टपकाता है
अँधेरी रात स्ट्रीट लाईट बन्द
घनघोर वारिश में और भी कई दन्द फन्द
इस सींड़े मौसम में न खा पाते हैं 
न सो पाते हैं
सच पूछिये तो वरसात के नाम पर
हमारे कटारे खड़े हो जाते हैँ