भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वात्सल्य / विजय कुमार पंत
Kavita Kosh से
Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:20, 22 जुलाई 2010 का अवतरण
तूलिका ने रंग से वात्सल्य क्या
अद्भुत उकेरा,
अंक में ले स्नेह, ममता
मुदित दृग करते सवेरा
और आश्रय कौन जिसमें
सहज और इतना स्वाभाविक
किरन पुंजो में समाता
हो घना कैसा अँधेरा..
तूलिका ने रंग से वात्सल्य क्या
अद्भुत उकेरा,
जन्म, जन्मा जननी से
जीवन सुफल जिस प्रेम से है
ढूंढते है देव किन्नर उस
चरण रज में बसेरा
तूलिका ने रंग से वात्सल्य क्या
अद्भुत उकेरा,
क्या महल अट्टालिकाये
क्या भवन सुंदर अनोखे
एक आंचल में तेरे
सारा बसा संसार मेरा
तूलिका ने रंग से वात्सल्य क्या
अद्भुत उकेरा