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शकीरा का वाका वाका / कुमार सुरेश

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गुज़रती जा रही हो
भिगोती हुई
पानी की तेज़ लहर

रह-रह कर
लगातार प्रज्वलित होती हुई
एक आग

सीसे को काटती हो
शहद की धार
ऐसी आवाज़

अल्हड किशोरी का
छलकता हो आनंद
ऐसा नृत्य

बारिश का हो इंतज़ार
छमाछम बरसे
अचानक

सोंदर्य की देवी
आ गई हो
मूर्ति से बाहर

ईश्वर को कहा जाता है
पूर्ण एश्वर्य
तब लगा वह अपने स्त्री रूप में
प्रगट हुआ है

जब शकीरा ने
वाका-वाका किवा

देखो
दावों को झुठलाते हुए
झलका है वह
अन्जान देश की लड़की
शकीरा में