भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सर ये फोड़िए / जॉन एलिया

Kavita Kosh से
J0shi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:19, 12 दिसम्बर 2010 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें



सर ही अब फोड़िए नदामत में
नीन्द आने लगी है फुरकत में

वो खला है कि सोचता हूँ मैं
उससे क्या गुफ्तगू हो खलबत में

मेरे कमरे का क्या बया कि जहाँ
खून थूका गया शरारत में

रूह ने इश्क का फरेब दिया
ज़िस्म को ज़िस्म की अदावत में

अब फकत आदतो की वर्जिश है
रूह शामिल नहीं शिकायत में

ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम
रूठते अब भी है मुर्रबत में

वो जो तामीर होने वाली थी
लग गई आग उस इमारत में

ऐ खुदा जो कही नहीं मौज़ूद
क्या लिखा है हमारी किस्मत में

ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मुहब्बत में