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अब जुनू कब किसी के बस में है / जॉन एलिया
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अब जुनूँ कब किसी के बस में है
उसकी ख़ु
शबू नफ़स-नफ़स में है
हाल उस सैद का सुनाईए क्या
जिसका सैयाद ख़ुद
क़फ़
स में है
क्या है गर ज़िन्दगी का बस न चला
ज़िन्दगी कब किसी के बस में है
ग़ैर
से रहियो तू ज़रा होशियार
वो तेरे जि
स्म की हवस में है
बाशिकस्ता
बड़ा हुआ हूँ मगर
दिल किसी नग़्मा-ए-जरस में है
'जॉन' हम सबकी दस्त-रस में है
वो भला किसकी दस्त-रस में है