भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धुंधलका / अशोक लव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मित्र !
जब धुंध इतनी घिर जाए
कि शीशे के पार कुछ दिखाई ना दे
तब -
हथेलियों से शीशे को पोंछ लेना
फिर
शीशे के पार देखना
सब कुछ साफ़-साफ़ दिखने लगेगा

मैं तो वहीं खड़ा था
जहाँ अब दिखाई देने लगा हूँ
सिर्फ धुंध ने तुम्हे
बहका रखा था