भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह लड़की-एक / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:15, 31 अगस्त 2010 का अवतरण (वह लड़की-एक / ओम पुरोहित कागद का नाम बदलकर वह लड़की-एक / ओम पुरोहित ‘कागद’ कर दिया गया है)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सामने के झौंपड़े में
रहने वाली
वह लड़की
अब
सपने नहीं देखती।
वह जानती है
कि, सपनों में भी
पुरूष की सत्ता
आ टपकती है
और कभी भी
उसके अबला होने का
लाभ उठा सकती है।
वह
यह भी जानती है
कि, सपना हो या यथार्थ
पुरूष की मांग पूरे बिना
उसकी मागं
कभी भी भरी नहीं जा सकती।
इसी लिए
अब वह
झौंपड़े में
निपट अकेली
यथार्थ को भोगती है
और सपने टालती हैं।