भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:04, 31 अगस्त 2010 का अवतरण (दर्द / ओम पुरोहित कागद का नाम बदलकर दर्द / ओम पुरोहित ‘कागद’ कर दिया गया है)
रोते अंधेरों को
धूओं क ढाढ़स देना
कितना अजीब सा लगता है
परन्तु
यह सचाई है
कि लोहे को लोहा काटता है
एक दिन
भीतर उतर गया मैं
अपने ही दिन से पूछने,
हाल, बेहाल थे
भीत्र कुछ न था
बस,
अकेला था दिल।
जी चाहा--
ले चलूं बाहर उजालों में
मगर
भय ने मना कर दिया
वरना
देख लेता वह
कि दर्द उसके लिए
मैं नहीं
दुनिया संजोती है ;
मैं तो माध्यम हूं
बस,
भेंट करता हूं।