चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन के प्रति स्नेह और श्रद्धा के साथ
चमक है पसीने की
कसी हुई मांसपेशियों पर,
चमक है ख़्वाबों की
तनी हुई भृकुटी पर ।
चमक सुर्ख, तपे लोहे की घन में,
चमक बहते नाले की
शांत सोये वन में ।
उसी चमक के सहारे मैं जिऊँगा
हर हादसे में आए ज़ख़्मों को सिऊँगा |